This entry was posted on जुलाई 3, 2009 by Vision Raval. It was filed under ऊदू कविता, मजाज़ लखनवी .
ये रंग-ए-बहार-ए-आलम है क्या फ़िक़्र है तुझ को ऐ साक़ी, महफ़िल तो तेरी सुनी न हुई कुछ उठ भी गये कुछ आ भी गये|
क्या बात है–वाह–parul
जुलाई 4, 2009 को 12:45 अपराह्न
वाह..
दिसम्बर 22, 2011 को 9:48 पूर्वाह्न
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ये रंग-ए-बहार-ए-आलम है क्या फ़िक़्र है तुझ को ऐ साक़ी,
महफ़िल तो तेरी सुनी न हुई कुछ उठ भी गये कुछ आ भी गये|
क्या बात है–वाह–parul
जुलाई 4, 2009 को 12:45 अपराह्न
वाह..
दिसम्बर 22, 2011 को 9:48 पूर्वाह्न