By विजन रावल For हिन्दी कव्यप्रेमीजन् . . . !!

मजाज़ लखनवी

2 responses

  1. ये रंग-ए-बहार-ए-आलम है क्या फ़िक़्र है तुझ को ऐ साक़ी,
    महफ़िल तो तेरी सुनी न हुई कुछ उठ भी गये कुछ आ भी गये|

    क्या बात है–वाह–parul

    जुलाई 4, 2009 को 12:45 अपराह्न

  2. वाह..

    दिसम्बर 22, 2011 को 9:48 पूर्वाह्न

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